Wednesday, January 18, 2012

तुम्हारा हाथ था....

ऐसी कई रातें आयी, दिया बुझ गया होता,
ऐसी भी बरसाते हुई, जहाँ बह गया होता.......
ऐसा तूफ़ान आया, ज़िन्दगी भटक गई होती,
ऐसी लहरे उठी, कश्ती डूब गई होती....
ऐसे उड़ गए होश, दिशाएं घिरने लगी,
चन्द्रमा की किरणोंसे, आशाएं जलने लगी......
ऐसा लग रहा था, यह जहाँ अब छोड़ दे,
सजी हुई मेह्फिलसे, अब मुह मोड़ दे......
फिर अचानक क्या हुआ, समझ में नहीं आया,
पतझड़से वीरान दुनियामें एक फुल खिल गया...
जब होश आया तो सामने कुछ नहीं था,
बस मेरे हाथ में, तुम्हारा ही हाथ था....