Friday, November 29, 2013

आराधना…….

चांदनी अब भी जवाँ है, तुम अभी क्यूँ सो गए ?
रात भी भीगी नहीं, फिर उस तरफ क्यूँ मुड़ गए ?

आसमाँ के दीप सारे रोशनी बरसा रहे हैं,
तुम मगर क्यूँ बेखबर होकर यहाँ से चल दिए?

यह हवा कि हल्की लहेर पूछती हैं बार बार,
रजनीगंधा कि खुशबुको क्या कभी तुम ले गए?

उठ रही हैं दिलमे मेरे, खुशियोंकी धुंद लहरें,
तुम किनारोँ कि तरह क्यूँ सूखे सूखे रह गए?

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